Thursday, May 13, 2010

टूटी बिखरी किरचों को मै चिपकाती रहती हूँ
गीत अधूरा या हो पूरा गुनगुनाती रहती हूँ
रंग बिरंगे लम्हे सीकर चादर सी बुन ली है
बेरंगे लम्हों में उसे ओढ़कर सो जाती हूँ

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