पीले से पत्तों के नीचे
छुपी हुई है छांव दुबक कर
धूप उदास अकेली उसको
ढून्ढ रही है सुबक सुबक कर
बहुत दिनों से नहीं मिले वो छोर
जहाँ दोनों मिलते थे
आधे ठन्डे, आधे गर्म फर्श पर
कुछ लम्हे खिलते थे
बहुत देर से देख रही थी हवा
धूप के नैना गीले
उड़ा ले गयी एक झोंके में
सारे बिखरे पत्ते पीले
पत्तों की चादर हटते ही
छाँव धूप से मिलने आई
नम आँखे जब धूप की देखी
उसकी आँखे नम हो आयीं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
wah dhoop chaanv ka kya milan dikhaya ..man prasann ho gaya...
ReplyDeleteपत्तों की चादर हटते ही
ReplyDeleteछाँव धूप से मिलने आई
नम आँखे जब धूप की देखी
उसकी आँखे नम हो आयीं
बहुत कोमल से एहसास ...अच्छी लगी ये रचना
सुंदर भाव...बढ़िया रचना के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteभाव की गहनता
gahre mann kee khaas abhivyakti
ReplyDeletebahut bhavbheenee rachana hai jise aapne bahut sunderta se prastut kiya hai.......Aabhar.......
ReplyDeleteबिम्ब मोहक है ।
ReplyDeleteबिम्ब मोहक है ।
ReplyDeleteये सच है और अकेला सच है कि रंजना जी की कविता में कला भी है और विचार भी ..ये किसी युग में किसी कवि का ,उसकी भाषा का और उसके कथ्य का क्लासिकल हो जाने जैसा है !
ReplyDeleteबहुत दिनों से नहीं मिले वो छोर
ReplyDeleteजहाँ दोनों मिलते थे
आधे ठन्डे, आधे गर्म फर्श पर
कुछ लम्हे खिलते थे
Bhavya sunder adbhud