एरोकेरिया का पेड़
मेरे घर के आँगन में खड़ा
आया था नन्हा सा
धीरे धीरे होता जा रहा था बड़ा
रोज़ कड़क धूप सहता
और चुपचाप खड़ा रहता
शाम को जब हम ऑफिस से आते
तो उसे देख कर लगता
जैसे किसी मासूम को
दिनभर धूप में खड़े रहने की
सजा मिली हो
एक दिन पति को उसपर तरस आया
और उन्होंने उसे बरामदे की अन्दर
दिवार की आड़ में जा टिकाया
अब उस पेड़ का पीलापन कम होने लगा
उसका रूखापन धीरे धीरे नम होने लगा
एक दिन बारिश आने पर मैंने सोचा
क्यों न इसे बरामदे से हटा कर
बारिश में भीगने दूँ
बारिश की फुहारों से
उसे खुद को सीचने दूँ
पर जब मैंने उसे खिसकाया
तो उसमे एक अजीब सा फर्क पाया
उस पेड़ की वो टहनियां
जो दिवार की तरफ थी
उतनी ही बढ़ी थी
जितनी जगह थी उनके पास
वो दीवार देख कर रुकने लगी थी
जबकि उसी पेड़ की दूसरी तरफ की टहनियां
लम्बी होकर नीचे को झुकने लगी थी
खुद को हरा रखने के लिए
उस पेड़ ने अपनी टहनियों की लम्बाई से
समझोता कर लिया था
वैसे ही जैसे हम करते है
अक्सर जिंदगी में
सबकुछ जोड़कर रखने के लिए
कुछ चीज़ों को टूट जाने देते हैं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत sundar rachna!!
ReplyDeletebahut bahut sunder kavita...
ReplyDeleteपेड़ के जरिये बहुत बड़ी बात कह दी आपने.. बहुत खूब
ReplyDeleteअक्सर जिंदगी में
ReplyDeleteसबकुछ जोड़कर रखने के लिए
कुछ चीज़ों को टूट जाने देते हैं...
इस तरह तो कभी सोचा ही नहीं ...
यही तो करते हैं हम सब ...!!
.....,.कुछ चीजों को टूट जाने देते हैं ।
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना ।