Sunday, May 9, 2010

एरोकेरिया का पेड़

एरोकेरिया का पेड़
मेरे घर के आँगन में खड़ा
आया था नन्हा सा
धीरे धीरे होता जा रहा था बड़ा
रोज़ कड़क धूप सहता
और चुपचाप खड़ा रहता
शाम को जब हम ऑफिस से आते
तो उसे देख कर लगता
जैसे किसी मासूम को
दिनभर धूप में खड़े रहने की
सजा मिली हो
एक दिन पति को उसपर तरस आया
और उन्होंने उसे बरामदे की अन्दर
दिवार की आड़ में जा टिकाया
अब उस पेड़ का पीलापन कम होने लगा
उसका रूखापन धीरे धीरे नम होने लगा
एक दिन बारिश आने पर मैंने सोचा
क्यों न इसे बरामदे से हटा कर
बारिश में भीगने दूँ
बारिश की फुहारों से
उसे खुद को सीचने दूँ
पर जब मैंने उसे खिसकाया
तो उसमे एक अजीब सा फर्क पाया
उस पेड़ की वो टहनियां
जो दिवार की तरफ थी
उतनी ही बढ़ी थी
जितनी जगह थी उनके पास
वो दीवार देख कर रुकने लगी थी
जबकि उसी पेड़ की दूसरी तरफ की टहनियां
लम्बी होकर नीचे को झुकने लगी थी
खुद को हरा रखने के लिए
उस पेड़ ने अपनी टहनियों की लम्बाई से
समझोता कर लिया था
वैसे ही जैसे हम करते है
अक्सर जिंदगी में
सबकुछ जोड़कर रखने के लिए
कुछ चीज़ों को टूट जाने देते हैं

5 comments:

  1. पेड़ के जरिये बहुत बड़ी बात कह दी आपने.. बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. अक्सर जिंदगी में
    सबकुछ जोड़कर रखने के लिए
    कुछ चीज़ों को टूट जाने देते हैं...
    इस तरह तो कभी सोचा ही नहीं ...
    यही तो करते हैं हम सब ...!!

    ReplyDelete
  3. .....,.कुछ चीजों को टूट जाने देते हैं ।
    उत्कृष्ट रचना ।

    ReplyDelete