चटक, चुलबुले, चमकीले से हरे गुलाबी और पीले से रोज़ सजाती हूँ मै सपने ओस की बूंदों से गीले से पर... आग उगलता सच का सूरज सपनो को पिघला देता है सब सपनों सा सरल नहीं है इस सच को दिखला देता है
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
bahut badhiya
ReplyDeletebahut layatmak.. badhiya rachna
ReplyDeletebahut sundar...
ReplyDeleteसच का सूरज सपनो को पिघला देता है ...
ReplyDeleteदिल को भीतर तक छू गयी ये पंक्तियाँ ...!!
swapn sajana nahi galat kutch
ReplyDeletekintu kathin sakar hai karna.
swapn kal ki sundrta ko
rasmi prbha ke saath me rahna. .......
AAPKI YEH ABHIVAYKTI HRADAY ASPRSI LAGI HAI ..
CONGRATULATION.