कभी कभी तनाव से ऊब कर
नींद जब पल्लू छुड़ा कर भागती है
तो मै रोकती नहीं उसका रास्ता
ये सोच कर की शायद
कहीं कोई मखमली सपनो की सेज पर
करता होगा उसका इंतज़ार
और चुपचाप चुनने लगती हूँ
आसमान के सितारे
क्योंकि दिन के उजाले
कई बार आँखों को चौंधिया देते हैं
और साफ़ दिखती हुई चीज़ें भी
रह जाती हैं अनसुनी, अनदेखी
दिन की भीड़ और भीड़ का शोर
अक्सर दबा देता है
कुछ आवाज़ों को
जो कानो तक आकर भी
गुज़र जाती हैं बिना दस्तक दिए
फिर इन नन्हे तारों की
टिमटिमाती रौशनी में
खोजती हूँ उन आवाज़ों को
ढूँढती हूँ उनके जवाब
और तब वो रौशनी और ख़ामोशी
देती है जवाब
हर अनसुनी बात का
और मै हैरान रह जाती हूँ ये देखकर
तारो की रौशनी में
सबकुछ दिखता है कितना साफ़
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"क्योंकि दिन के उजाले
ReplyDeleteकई बार आँखों को चौंधिया देते हैं
और साफ़ दिखती हुई चीज़ें भी
रह जाती हैं अनसुनी, अनदेखी
दिन की भीड़ और भीड़ का शोर
अक्सर दबा देता है
कुछ आवाज़ों को
जो कानो तक आकर भी
गुज़र जाती हैं बिना दस्तक दिए"
इन्ही चमको और शोरो मे भी अपने तारे खोज लेना ही ज़िन्दगी है... आपका तो आसमान भी साफ़ है.. बाम्बे मे तो वही नही दिखता...
बढिया कविता..
तारो की रौशनी में
ReplyDeleteसबकुछ दिखता है कितना साफ़
बेहतरींर रचना
सुन्दर और भावपूर्ण
Bahut sunder abhivykti...........
ReplyDeleteRanjana jee ye rachana dil ko choo gayee...........
Aabhar.....
दिन के उजालों में आँखें चुंधियाती है ...तारों के उजास में वही साफ़ नजर आना ...
ReplyDeleteअंतर्दृष्टि का कमाल है ...
अच्छी कविता ...!!
खोजती हूँ उन आवाज़ों को
ReplyDeleteढूँढती हूँ उनके जवाब
और तब वो रौशनी और ख़ामोशी
देती है जवाब
हर अनसुनी बात का...... main bhi janna chahungi wo raz
नींद का पल्लू छुड़ाकर भागना कमाल का थोट है..
ReplyDeletedeep to jalta rahega...
ReplyDeletelok mn kuch bhi kahega...
prem path pr paavn rkh kar
kheechna to maha apmaan hai..
sheesh de utkarsh hona...
to maha abhimaan hai...
heer ranjha ki tarh koi to kuch bhi kahega..
deep to jalta rahega...
deep to jalta rahega...
aap ki kavitayen bahut sanvedan sheel hai..badhai.