Saturday, May 1, 2010

अश्कों से धुले लम्हों को पोंछती रहती हूँ
कैसे जियूं ये रिश्ते बस सोचती रहती हूँ
फुरसत में कही कोई गम याद न आ जाये
मसरूफियत में खुशियों को खोजती रहती हूँ

7 comments:

  1. गज़ब...है...
    बेहतर...अश्कों से धुले लम्हे....

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  2. फुर्सत में याद ना आये ...मसरूफियत भी कहाँ रोक पाती है यादों को ...!!

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  3. विवशता सम्बन्धों की . अच्छा चित्रण ।

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