अश्कों से धुले लम्हों को पोंछती रहती हूँ कैसे जियूं ये रिश्ते बस सोचती रहती हूँ फुरसत में कही कोई गम याद न आ जाये मसरूफियत में खुशियों को खोजती रहती हूँ
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
गज़ब...है...
ReplyDeleteबेहतर...अश्कों से धुले लम्हे....
bahut khoob
ReplyDeleteati sunder....
ReplyDeleteफुर्सत में याद ना आये ...मसरूफियत भी कहाँ रोक पाती है यादों को ...!!
ReplyDeletebahut hi achhi gazal
ReplyDeleteविवशता सम्बन्धों की . अच्छा चित्रण ।
ReplyDeleteBheegi bheegi soch...
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