टूटी बिखरी किरचों को मै चिपकाती रहती हूँ गीत अधूरा या हो पूरा गुनगुनाती रहती हूँ रंग बिरंगे लम्हे सीकर चादर सी बुन ली है बेरंगे लम्हों में उसे ओढ़कर सो जाती हूँ
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteयही सही है
waah...
ReplyDeleteसुंदर भाव ।
ReplyDeleteलम्हों का लिहाफ.. बढ़िया है
ReplyDeletebahut sunder tareeka raahat pane ka.......
ReplyDeletesunder rachna.
ReplyDeleteVERY OPTIMISTIC VIEWS.ENJOYED READING.KEEP IT UP.
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