Friday, May 7, 2010

उदास धूप

पीले से पत्तों के नीचे
छुपी हुई है छांव दुबक कर
धूप उदास अकेली उसको
ढून्ढ रही है सुबक सुबक कर
बहुत दिनों से नहीं मिले वो छोर
जहाँ दोनों मिलते थे
आधे ठन्डे, आधे गर्म फर्श पर
कुछ लम्हे खिलते थे
बहुत देर से देख रही थी हवा
धूप के नैना गीले
उड़ा ले गयी एक झोंके में
सारे बिखरे पत्ते पीले
पत्तों की चादर हटते ही
छाँव धूप से मिलने आई
नम आँखे जब धूप की देखी
उसकी आँखे नम हो आयीं

11 comments:

  1. wah dhoop chaanv ka kya milan dikhaya ..man prasann ho gaya...

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  2. पत्तों की चादर हटते ही
    छाँव धूप से मिलने आई
    नम आँखे जब धूप की देखी
    उसकी आँखे नम हो आयीं


    बहुत कोमल से एहसास ...अच्छी लगी ये रचना

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  3. सुंदर भाव...बढ़िया रचना के लिए धन्यवाद

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  4. बहुत ही सुन्दर कविता !

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  5. बहुत सुन्दर रचना
    भाव की गहनता

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  6. bahut bhavbheenee rachana hai jise aapne bahut sunderta se prastut kiya hai.......Aabhar.......

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  7. ये सच है और अकेला सच है कि रंजना जी की कविता में कला भी है और विचार भी ..ये किसी युग में किसी कवि का ,उसकी भाषा का और उसके कथ्य का क्लासिकल हो जाने जैसा है !

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  8. बहुत दिनों से नहीं मिले वो छोर
    जहाँ दोनों मिलते थे
    आधे ठन्डे, आधे गर्म फर्श पर
    कुछ लम्हे खिलते थे
    Bhavya sunder adbhud

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