Wednesday, April 21, 2010

बड़े तूफ़ान देखे हैं

बड़े तूफ़ान देखे हैं
अभी तक मैंने राहों में
कही लालच, कही छल
और कहीं नफरत निगाहों में

ख़ुशी की ओर जब भी
मैंने अपनी बांह फैलाई
सिमट आई न जाने
सिसकियाँ कितनी पनाहों में

वो जो ऊँगली उठाते रहते हैं
गैरों पे अक्सर ही
उन्ही के हाथ देखे हैं
सने मैंने गुनाहों में

की अब तो साँस लेने से भी
डर लगने लगा मुझको
सुना है ज़हर का गुब्बार
फैला है हवाओं में

जो तुमको दूर जाना है
चले जाओ जहाँ चाहो
तुम्हे मै ढून्ढ ही लूंगी
मेरे अश्कों में आहों में

मैंने देखा है मेरे सब्र को
तुम आजमाते हो
कभी मिल जाये न आंधी
तुम्हे ठंडी हवाओं में

न जाने इश्क क्यों इतना है तुमसे
कुछ भी हो जाये
मगर उठता है हर पल हाथ
बस तेरी दुआओं में

5 comments:

  1. wow !!!!!!!!
    न जाने इश्क क्यों इतना है तुमसे
    कुछ भी हो जाये
    मगर उठता है हर पल हाथ
    बस तेरी दुआओं में
    bahut khub


    shkehar kumawat

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  2. वो जो ऊँगली उठाते रहते हैं
    गैरों पे अक्सर ही
    उन्ही के हाथ देखे हैं
    सने मैंने गुनाहों में

    आज के सच के बेहद करीब आपकी रचना। बहुत बेहतरीन।

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  3. Ranjana ek ek pankti vajandar aur dil ke bhavo se ot - prot bahut sunder rachana hai .Kai var pad dalee pr nazare hut hee nahee rahee hai......
    Aasheesh..........

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  4. मैंने देखा है मेरे सब्र को
    तुम आजमाते हो
    कभी मिल जाये न आंधी
    तुम्हे ठंडी हवाओं में
    waah

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  5. Ranjna ji, aa=ki yeh kavita dil ko chhookar hi nahi bahut andar tak chali gayee.
    aapki lifafon ke kagaj khol kar padhne ki aadat to bilkul mere se milti hai.
    Ek Lifafe ke kagaz ki lines neeche de rahi hoon.
    "Friend break not my heart,
    Chrismas is the time and thirty six hours we haye,
    Like a crack in the wall,
    And a beam of light is stealthily creeps
    into the walls of separation."

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