Friday, April 9, 2010

हर एक बुत के आगे झुकाते रहे सर
वो दर हो हमारा, या किसी और का दर
शहर कोई भी हो, किसी का भी हो घर
क्या जाने खुदा मिल ही जाये कहीं पर

8 comments:

  1. सच लिखा है न जाने किस रूप में कहां मिल जाए कुछ पता नहीं

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  2. sahi kaha...na jaane kis roop me narayan mil jaaye...

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  3. क्या जाने खुदा मिल जाए कही पर ...
    आस बनी रहे ...पूरी भी हो ...
    बहुत शुभकामनायें ...!!

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  4. वाह! बहुत खूब!

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  5. panktiyan aur acchi ho sakti thi
    ................ek bangi...................

    khuda ke buton ke age,jhukaya sar ye sochkar
    banaya inhe kisi ne ,ho shayad usse milkar

    prayas accha hai..........chalte jaiye

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  6. लाजवाब ... कहीं तो खुदा मिलेगा ... इंसान को अपना काम करना चाहिए ...

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