मैंने देखा
घर से काफी दूर
बहुत तेज़ चमक के साथ
मिट्टी में कुछ झिलमिलता सा
पर बादल के टुकड़े
जैसे ही सूरज को ढकते
सब शांत हो जाता
और फिर बादल के हटते ही
फिर वही ज़ोरदार चमक
जैसे सूरज का कोई टुकड़ा
टूट कर गिर गया हो ज़मीन में
मुझसे रहा ही नहीं गया
सोचा जाकर देखूं
इस सूरज के छोटे टुकड़े को करीब से
पास जाकर देखा
एक चमकीली सी कागज़ की पन्नी
हवा के थपेड़ों से फडफडा रही थी
और उसपर पड़ती धूप की किरने
उसकी चमक को दसगुना बढा रही थी
किसी ने सही कहा है
सही वक़्त पर सही प्रतिक्रिया
किसी को कहा से कहाँ पहुंचा देती है
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waah Ranjana ji kya baat kahi...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
bahut khub ...
ReplyDeletebehad khoobsurat likha hai.
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