Friday, April 2, 2010

सुनते है वो रिश्ता अब टूटने वाला है!!!

फूल को मिटटी में डाल देने से...
क्या वो पनप उठता है अपने आप?
गीली लकड़ी ने...
क्या आग पकड़ी है कभी?
बारिश की बूंदों में भीगने का मज़ा...
क्या छत के नीचे खड़े होकर लिया जा सकता है?
बिना बंधन के रुकी है कोई रस्सी...
किसी सिरे से किसी सिरे तक?
तब क्यों रिश्ते की आंच को सुलगने से पहले ही...
कह दिया इसमें गर्माहट नहीं?
क्यों फूलों को पनपने से पहले कह दिया...
इसमें नर्माहट नहीं?
क्यों रिश्तों को तोडना...
जुड़े रहने से ज्यादा आसान है?
क्यों न झुकने की प्रवृत्ति पर...
इतना अभिमान है?
क्यों सात जन्मो के रिश्ते...
साथ माह में ही बासी होने लगते हैं?
क्यों सपनो को जीते हुए...
हम सच्चाइयों को खोने लगते हैं?
कभी सच की गहराई में गोते लगाओ...
खुद को उसकी जगह रखकर हर बात पर गौर फरमाओ,
रिश्तों का बनना बिगड़ना किसी एक के हाथ में नहीं...
अपने हिस्से की गलतियों को सोचो तब फैसला सुनाओ.

11 comments:

  1. रिश्तों का बनना बिगड़ना किसी एक के हाथ में नहीं...
    अपने हिस्से की गलतियों को सोचो तब फैसला सुनाओ

    -काश!! लोग इस गुढ़ बात को समझ पाते तो आज के टूटते रिश्ते नया अर्थ पाते.

    बहुत सुन्दर संदेश दिया है.

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  2. रिश्ते जब अपनी जड़ों से नहीं जुड़ पाते हैं तब रिसते हैं
    सुन्दर रचना, बहुत कुछ उकेरती हुई

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  3. jindgee kaa saar nichod kar rakh diya aapne............
    insaan kee sabse badee kamjoree hai apane me nahee doosaro me khamiya dekhana..............ye swabhav hee le doobata hai..............

    bahut sunder rachana.kai sandesh de gayee.........
    Aabhar........

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  4. क्यों सात जन्मो के रिश्ते...
    साथ माह में ही बासी होने लगते हैं?
    क्यों सपनो को जीते हुए...
    हम सच्चाइयों को खोने लगते हैं?
    कभी सच की गहराई में गोते लगाओ...
    Aaj ke samay ki bidambana yahi hai....
    Vartmaan daur mein Rishten bana lena bahut saral hai lekin nibha paane bahut kam nazar aate hai.. Khair yah to apne par nirbhar hai......
    Bahut badhai

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  5. aap sabhi ko bahut dhanyvaad...:)

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  6. ताली दोनो हाथों से बजती है .. ऐसे ही रिश्ते दोनो तरफ से निभाने पढ़ते हैं ....

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