थक गयी हूँ देखती हूँ रोज़ कुछ झूठे से चेहरे लाख कोशिश करके भी दिखतें हैं वो रूठे से चेहरे चापलूसी का जिसे है ज्ञान उस चेहरे की कीमत जिसको बस है काम से ही काम वो टूटे से चेहरे
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
नौकरी छोड़ देनी चाहिये
ReplyDeletetathy ko ujagar karatee ek dil se likhee rachana.
ReplyDeleteथक गयी हूँ देखती हूँ रोज़
ReplyDeleteकुछ झूठे से चेहरे
अच्छी अभिव्यक्ति झूठे चेहरे दिखते ही रहते हैं
बेहतरीन
ReplyDeleteचापलूसी का जिसे है ज्ञान
ReplyDeleteउस चेहरे की कीमत
जिसको बस है काम से ही काम
वो टूटे से चेहरे
bahut sundar rachna
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
bahut khoobsoorat....
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com