Friday, June 7, 2013














फिसल कर आसमां की गोद से 
जब भी गिरी हो तुम 
न जाने बांह मेरी खुद-ब -खुद 
क्यों फ़ैल जाती हैं 
ऐ नन्ही बूँद तू मुझको
मेरी बेटी सी लगती है 
ज़रा पलकें मै फेरूँ तो 
वो मुझसे रूठ जाती है 

- रंजना डीन 

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-06-2013) के चर्चा मंच पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर एहसास

    ReplyDelete
  3. बूँद की उपमा बेटी से करना अच्छा लगा। सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  4. बूंद और बेटी ....अच्छी प्रस्तुति !

    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

    ReplyDelete
  5. मीठा स एहसास लिए ... सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete