ख़ुशी हो साथ, या न हो मगर गम ढून्ढ लेता है मै कितना भी छुपुं मेरी महक ये सूंघ लेता है चला आता है चुपके से रुला जाता है जी भर के मेरे कंधे पे सर रखकर ये घंटो ऊंघ लेता है - रंजना डीन
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
behad khubsurat kavita...
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