रिसती दीवार
सीलन से यूँ ही नहीं गिर जाती दीवारें
बहुत दिनों तक खुद में ही
समेटती, सहेजती रहती है नमी को
संभालती रहती हैं हर कमी को
पर जब ये नमी उभर आती है
बूँदें बन कर सीली हुई दीवारों पर
फिसलती हैं लकीर बनकर किनारों पर
तब हमदर्दी की धूप की गर्मी
मीठे से लफ़्ज़ों की नरमी
अगर सुखा ले गयी ये सीलन
तो फिर जी उठता है सहने का जज्बा
वर्ना किसी दिन यूँ ही
घावों सी रिसती दीवार
दम तोड़कर ढह जाती है
- रंजना डीन
सीलन से यूँ ही नहीं गिर जाती दीवारें
बहुत दिनों तक खुद में ही
समेटती, सहेजती रहती है नमी को
संभालती रहती हैं हर कमी को
पर जब ये नमी उभर आती है
बूँदें बन कर सीली हुई दीवारों पर
फिसलती हैं लकीर बनकर किनारों पर
तब हमदर्दी की धूप की गर्मी
मीठे से लफ़्ज़ों की नरमी
अगर सुखा ले गयी ये सीलन
तो फिर जी उठता है सहने का जज्बा
वर्ना किसी दिन यूँ ही
घावों सी रिसती दीवार
दम तोड़कर ढह जाती है
- रंजना डीन
ये सीलन जितना जल्दी हो सूख जानी चाहिए ...
ReplyDeleteभावमय प्रस्तुति ...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है .
ReplyDeleteVery very beautiful...A woman is just like a wall who bears all the pain within for years silently before breaking down..loved it!
ReplyDeletebahut bhavpurn...aapka likha bahut apna sa lagta hai
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