आदमी ने फर्क बतलाया न होता गर हमें... तुम बताओ फर्क क्या था रब, खुदा या राम में? रो के हमसे आसमान ने कह दी अपने दिल की बात... अब नहीं रहता कोई रब तीर्थों और धाम में.
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
ekdum solah aane sacchee baat.........
ReplyDeletekoun samjhae swarth kee rajneeti karne walo ko.... aur jo dharm ka mudda utha apana swarth poora karate ho.....
आपकी रचना का दर्द समझ आता है ... दर असल खुद हम लोगों ने तीर्थस्थल और धर्म को ग़लत साबित कर दिया है ....
ReplyDeleteदुखी मन से सच स्वीकार करना पड़ता है ...!
ReplyDeleteati uttam
ReplyDeleteuttam vichar...
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