मन उदास है
और गुलाब के पत्तों पर
थमी हुई सुनहरी बूंदे
देख लग रहा है
आसमान भी बहुत रोया है शायद आज
वैसे ही जैसे रो उठती हूँ
मै मन ही मन
जब सारी कोशिशों के बाद भी
जीत जाती हैं साजिशें
और हार जाती है
मेहनत और ईमानदारी
किसने कहा सियासत
सिर्फ सियासी गलियारों में
सफ़ेद पोशों के बीच ही होती है
मैंने देखी है सियासत
हँसते मुस्कुराते चेहरों के पीछे
आपकी कमज़ोर नब्ज़ ढूँढती हुई
निगाहों के बीच
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Hi ranjana,
ReplyDeleteतुम्हारी कवितायें अपने मन की बात सी लगती हैं .
सच है हमारे आस पास जीवन में हर कहीं साजिशें दिखाई देती हैं....
मीन
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
निगाहों के बीच की सियासत तो ज्यादा ही सियासी होगा.
ReplyDeleteसुन्दर रचना
मैंने देखी है सियासत
ReplyDeleteहँसते मुस्कुराते चेहरों के पीछे
आपकी कमज़ोर नब्ज़ ढूँढती हुई
निगाहों के बीच ...
सचमुच मन कभी बहुत उदास हो जाता है ...
कितने हृदयों की बात को इतनी आसानी से शब्दों में बयान कर दिया आपने ...
बहुत खूब ...!
adbhut lekhan ! kitnee sahjata saralta se aae din hum sabhee ke rojmarra kee jindagee me ghatne walee baat aapne kavita ke madhyam se ujagar kar dee.....
ReplyDeleteAabhar
मैंने देखी है सियासत
ReplyDeleteहँसते मुस्कुराते चेहरों के पीछे
आपकी कमज़ोर नब्ज़ ढूँढती हुई
निगाहों के बीच ...
सधे हुए शब्दों की सुंदर प्रस्तुति.... बहुत अच्छी लगी रचना
wah .bahot sunder .
ReplyDeletesach kaha aapne, charo aur sajeeshe hi sajish.....wo bhi muskurate hue......apna ban kar deekhate hue.......:(
ReplyDeletebahut pyari rachna!
ittifaq se aapke blog tak aana hua lekin man bahut khush hua aapki rachna padhkar
ReplyDeleteकिसने कहा सियासत
सिर्फ सियासी गलियारों में
सफ़ेद पोशों के बीच ही होती है
मैंने देखी है सियासत
हँसते मुस्कुराते चेहरों के पीछे
आपकी कमज़ोर नब्ज़ ढूँढती हुई
निगाहों के बीच
देख लग रहा है
ReplyDeleteआसमान भी बहुत रोया है शायद आज
loved the phrase
uttkrisht.....
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