Sunday, August 29, 2010

आओ....थाम लें फिर से हथेलिया


आओ....
थाम लें फिर से हथेलिया
सारे दोस्त, सारी सहेलियां
लौट पड़े बचपन की और
भूल कर आज की पहेलियाँ

मिट्टी में बनायें कुछ घरौदे
खेले सिकड़ी और छुपा छुपाई
वो खट्टे मीठे चूरन
वो धूप में पड़ी चारपाई

वो मोर्निंग वाक पर जाने के लिए
गेट से कूद कर दोस्त को जगाना
झूठे भूत के किस्से सुना कर
रोब जमाना, सबको डरना

वानर सेना बनाकर
पूरी कालोनी में चक्कर लगाना
दीदी को साईकिल सिखाने में
खुद भी गिरना, उनको भी गिरना

यादें वैसी ही है ताज़ा
जैसी सुबह की ओस
पर बदल गए है वो एहसास
वो जज्बा, वो जोश

अब मन की तस्वीर
स्वार्थ से लेमिनेटेड है
बिना काम के किसी से मिलना
फैशन आउट डेटेड है

4 comments:

  1. Thnx Aavesh Tiwari, to bring me here!

    I am happy to see the affectionate and Poetic page.

    Love is there everywhere.

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  2. bahut sunder likha hai,khaskar ant char pangtiyan.

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  3. MITTRON KI TOLI ME JAKR LAGTA NAHI HAI AAJ ATEET.
    TOTIL VANI YUVA SARART KUCH BHI NAHI HAI AAJ
    BYTEET.

    AAPKI RACHNAYE SADA KI HI BHATI ACCHI AUR BAHUT ACCHI LAGTI HAI.
    SHUBKAMNAYE.

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