Friday, August 13, 2010

जिंदगी तू मुस्कुराये बस यही एक चाह थी



यूँ बदलते देखे मैंने रंग हरपल नित नए
रोते रोते यूँ कोई कैसे लगाये कहकहे


जिंदगी को थामने की अजमाइश की बहुत
पर मेरे अरमान के घर रेत के जैसे ढहे


मेरे होठों की दरारे दिन -ब-दिन गहरी हुई
आँखों से न जाने कितने अश्क के दरिया बहे


जिंदगी तू मुस्कुराये बस यही एक चाह थी
बस इसी चाहत में खुद पर फातिये हमने पढ़े

2 comments:

  1. जिंदगी बस तू मुस्कुराये ...इसलिए खुद पर फातिये पढ़े मैंने ...
    मुग्ध किया इस भावना ने ..!

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