यूँ बदलते देखे मैंने रंग हरपल नित नए
रोते रोते यूँ कोई कैसे लगाये कहकहे
जिंदगी को थामने की अजमाइश की बहुत
पर मेरे अरमान के घर रेत के जैसे ढहे
मेरे होठों की दरारे दिन -ब-दिन गहरी हुई
आँखों से न जाने कितने अश्क के दरिया बहे
जिंदगी तू मुस्कुराये बस यही एक चाह थी
बस इसी चाहत में खुद पर फातिये हमने पढ़े
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteजिंदगी बस तू मुस्कुराये ...इसलिए खुद पर फातिये पढ़े मैंने ...
ReplyDeleteमुग्ध किया इस भावना ने ..!