Tuesday, July 6, 2010

मै हूँ, पास नहीं दूर ही सही!!!


मै महसूस कर रही हूँ
मौसम की नमी
जो उपजी है शायद तुम्हारे आंसुओं से
जब ये बढती है
तो उभर आती है कुछ बूंदे
मन की दीवारों पर
और टपक पड़ती हैं यहाँ वहाँ
मै नहीं आ सकती अब
तुम्हारे आंसू पोछने
क्योंकि एक पेड़ की तरह
बांध लिया है मैंने खुद को
अपनी जड़ों से
लेकिन मेरे पत्तों से छनती हवा
अभी भी चाहती है
सुखाना तुम्हारे आंसुओं को
तभी तो फूँक मार रही है लगातार
तुम्हारी आँखों के नम कोरों पर
और कह रही है मै हूँ
पास नहीं दूर ही सही

8 comments:

  1. एक पेड़ की तरह
    बांध लिया है मैंने खुद को
    अपनी जड़ों से
    लेकिन मेरे पत्तों से छनती हवा
    अभी भी चाहती है
    सुखाना तुम्हारे आंसुओं को
    तभी तो फूँक मार रही है लगातार
    तुम्हारी आँखों के नम कोरों पर
    और कह रही है मै हूँ
    पास नहीं दूर ही सही

    होना उसका ही काफी है , पास नहीं दूर सही ....
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...!!

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  2. bahut gahree aatmiyta kee bhavnako liye safal aur shaandar abhivykti .

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  3. उभर आती है कुछ बूंदे
    मन की दीवारों पर
    और टपक पड़ती हैं यहाँ वहाँ
    aur jazbaaton kee khidkiyaan khol jati hain

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  4. तुम्हारे आंसुओं से पुरे कमरे में एक अजीब सी humidity छा गयी है ..
    अच्छा लगता है गर्मी में अब बिना cooler के रहना.

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  5. दिल की गहराईयों से मजबूरी की अच्छी दास्तां है दिल को छू गयी। शुभकामनायें

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  6. एक पेड़ की तरह.......
    .......जड़ो से
    रंजना जी ! आपकी अभिव्यक्ति किसी आत्मीय प्रतिकार का संकेत है . जो सरस व सहज है ।
    प्रशंसनीय ।

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