मै महसूस कर रही हूँ
मौसम की नमी
जो उपजी है शायद तुम्हारे आंसुओं से
जब ये बढती है
तो उभर आती है कुछ बूंदे
मन की दीवारों पर
और टपक पड़ती हैं यहाँ वहाँ
मै नहीं आ सकती अब
तुम्हारे आंसू पोछने
क्योंकि एक पेड़ की तरह
बांध लिया है मैंने खुद को
अपनी जड़ों से
लेकिन मेरे पत्तों से छनती हवा
अभी भी चाहती है
सुखाना तुम्हारे आंसुओं को
तभी तो फूँक मार रही है लगातार
तुम्हारी आँखों के नम कोरों पर
और कह रही है मै हूँ
पास नहीं दूर ही सही
पास नहीं दूर ही सही
एक पेड़ की तरह
ReplyDeleteबांध लिया है मैंने खुद को
अपनी जड़ों से
लेकिन मेरे पत्तों से छनती हवा
अभी भी चाहती है
सुखाना तुम्हारे आंसुओं को
तभी तो फूँक मार रही है लगातार
तुम्हारी आँखों के नम कोरों पर
और कह रही है मै हूँ
पास नहीं दूर ही सही
होना उसका ही काफी है , पास नहीं दूर सही ....
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...!!
bahut gahree aatmiyta kee bhavnako liye safal aur shaandar abhivykti .
ReplyDeleteउभर आती है कुछ बूंदे
ReplyDeleteमन की दीवारों पर
और टपक पड़ती हैं यहाँ वहाँ
aur jazbaaton kee khidkiyaan khol jati hain
bahut khubsurat, bahut pyari aatmiyapurn rachna!!
ReplyDeleteतुम्हारे आंसुओं से पुरे कमरे में एक अजीब सी humidity छा गयी है ..
ReplyDeleteअच्छा लगता है गर्मी में अब बिना cooler के रहना.
दिल की गहराईयों से मजबूरी की अच्छी दास्तां है दिल को छू गयी। शुभकामनायें
ReplyDeleteएक पेड़ की तरह.......
ReplyDelete.......जड़ो से
रंजना जी ! आपकी अभिव्यक्ति किसी आत्मीय प्रतिकार का संकेत है . जो सरस व सहज है ।
प्रशंसनीय ।
oooh nooooo...I cant read hindi :(
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