Saturday, July 17, 2010

ख्वाहिशें और सपने


छोटी छोटी ख्वाहिशें लिख लेती थी
कागज़ की रंग बिरंगी पुर्चियों पर
और लिखते लिखते जमा होता गया
पुर्चियों का खज़ाना

पर आज की बारिश न जाने
क्या कह गयी धीरे से कानो में
और उन पुर्चियों से
नन्ही नन्ही नाव बनाकर
बहा दी मैंने खिलखिलाते पानी में

ये सोच कर की
ख्वाहिशें और सपने
समेट कर रखने से नहीं
आजाद छोड़ देने से पूरे होते हैं

और उन रंग बिरंगी पुर्चियों से
बनी इन्द्रधनुषी नावें
चल पड़ी हैं अपनी अपनी धाराएँ
अपनी अपनी मंजिले तलाशने

आज ख्वाहिशें और सपने आजाद हैं
और लहरों का पानी रंगीन
शायद मिल जाये उन्हें
अपना आसमान, अपनी ज़मीन.




7 comments:

  1. और उन पुर्चियों से
    नन्ही नन्ही नाव बनाकर
    बहा दी मैंने खिलखिलाते पानी में

    ये सोच कर की
    ख्वाहिशें और सपने
    समेट कर रखने से नहीं
    आजाद छोड़ देने से पूरे होते हैं!!!!!!!!!
    bahut sunder bhav, arth purn rachna. badhai .

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  2. ये कविता काल्पनिक है है ,सपनों और ख्वाहिशों को उन्मुक्त छोड़ देने वाले इस जहाँ में नहीं होते ,बस चले तो दूसरों के सपनों और ख्वाहिशों को भी लोग सलाखों में जकड दे ,सच से बेहद दूर होने की वजह से कविता के एक एक शब्द गूंगे हैं और हम इन्हें कराहते सुन रहे हैं ,हाँ आप खुद को तसल्ली दे सकती हैं |

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  3. खिलखिलाते पानी में ।
    मौन ध्वन्यात्मकता ।
    प्रशंसनीय ।

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  4. बहुत ही सुन्दर!

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  5. kitna pyara likha hai aapne ...ekdum komal sa ahsaas hota hai ....

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  6. ये सोच कर की
    ख्वाहिशें और सपने
    समेट कर रखने से नहीं
    आजाद छोड़ देने से पूरे होते हैं.

    virach sach!!!

    nice post......congratulation.....

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