Friday, February 12, 2010

धड़कने जब धडकनों से बोलती है

धड़कने जब धडकनों से बोलती है...
जाने कितने राज़ दिल के खोलती है,
थाम लेती हैं हथेली दूर से ही...
बाँहों में बाहें फसा कर डोलती हैं.
कितने भी कड़वे हो लम्हे जिंदगी के...
तल्खियों में चाशनी सी घोलती हैं,
बेपनाह चाहतों की बारिशों को...
जब बहाती है कभी न तोलती है.

6 comments:

  1. बढ़िया...सुंदर अभिव्यक्ति....

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  2. सच है जब धड़कने दिल से बोलती हैं तो प्यार का राग ही निकलता है .... सुंदर रचना है ...

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  3. आपकी कविता पढ़ कर ये नज्म याद आई -
    मेरी धडकनों में है चाप सी ,
    ये जुदाई भी है मिलाप सी ,
    तुझे क्या पता मेरे दिल बता ,
    मेरे साथ क्या कोई और है ?

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