मन चिटका और बह निकला दुःख
सात समुन्दर पार कहीं
आशाएं भी टूटी बिखरी
आँखे भी भरपूर बही
क्यों मन भारी, क्यों मैं हारी
प्रश्न न जाने कितने है
चहरे के पीछे चेहरे हैं
सब नकली है जितने हैं
बढती जाती मन की पीड़ा
गहरे होते जाते घाव
सच हर रोज अपाहिज होता
झूठ के लम्बे होते पाँव
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सच हर रोज अपाहिज होता
ReplyDeleteझूठ के लम्बे होते पाँव
सब कुछ झूठ है आज का समय बस दिखावे का है ... सच कहा है झूठ के पाँव लंबे होते जा रहे हैं ... अच्छी रचना ...
Jakhmi aur apahij hota hai such,
ReplyDeletePar haar kar marta hai jhootth.
Bana rahe yeh vishwas, Hamesha