Thursday, February 18, 2010

कुछ पल बैठो साथ हमारे

कुछ पल बैठो साथ हमारे...
कुछ बोलो मुह खोलो तो,
हर्फों को तो समझ लिया है...
जज्बे को भी तौलो तो.

दुनिया भर में घूम रहे हो...
फैला करके कितने राग,
कुछ पल को तो चैन से बैठो...
कुछ पल मेरे हो लो तो.

तीखे, कडुवे, खट्टे, खारे...
बहुत जायके दुनिया में,
आओ कह दो हौले से कुछ...
कुछ मीठा सा बोलो तो.

झूठी हंसी से थके हुए से...
दिखती है ये लब तेरे,
रख लो मेरी गोद में सर को...
हंस न पाओ रो लो तो.

8 comments:

  1. झूठी हंसी से थके हुए से...
    दिखती है ये लब तेरे,
    रख लो मेरी गोद में सर को...
    हंस न पाओ रो लो तो

    आपकी ये लाईन बहुत कुछ बयाँ कर रही है , बहुत खुब ।

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  2. खूबसूरत....मैं भी अक्सर आपकी ही तरह सन्नाटे को सुनने की कोशिश करता हूं....ज़ाहिर है कोई आवाज़ न होना भी अपने आप में एक आवाज़ है....और शायद सबसे गहरे भाव सन्नाटे के ही होते हैं....
    जानता था लखनऊ में और भी कई शानदार लिखने वाले हैं....अपना शहर वाकई लाजवाब है....लखनऊ अपने आप में एक अहसास है और इसलिए जब लखनवी कलम उठाता है तो वो लिखता है....जो केवल अहसास किया जा सकता है बयान नहीं....मुकर्रर....
    सपनों में ही सही उड़ें ज़रूर....पंख फैलाएं...डैनों में ताकत भी आएगी....

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  3. झूठी हंसी से थके हुए से...
    दिखती है ये लब तेरे,
    रख लो मेरी गोद में सर को...
    हंस न पाओ रो लो तो.

    आपकी इन लाइनों में छिपे जज्वात की तारीफ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...

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  4. झूठी हंसी से थके हुए से...
    दिखती है ये लब तेरे,
    रख लो मेरी गोद में सर को...
    हंस न पाओ रो लो तो.

    बेहतरीन .......

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  5. झूठी हंसी से थके हुए से...
    दिखती है ये लब तेरे,
    रख लो मेरी गोद में सर को...
    हंस न पाओ रो लो तो ..

    वाह क्या बात कही है ... हंस न पाओ तो रो लो ... सच है किसी की गोद में सर रख कर रोना अच्छा लगता है ...

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  6. सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ... रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ... नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है.... सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ. ...........

    very true...
    pankh se kuch nahi hota housle se uddan hoti hai..

    best wishes

    Mohit

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