
सड़कों का सन्नाटा
चटकीली धूप
सूखे गिरे पत्तों की सरसराहट
हवा की सांय सांय
इक्का दुक्का दिखते लोग
बड़े लाल घड़ों वाले ठेले के साथ
वो जलजीरे वाला
दूर किसी कालोनी में
आइसक्रीम वाले की गुहार
और मोटे पर्दों वाली खिडकियों से
झांक कर उसे रुकने का इशारा करते बच्चे
अठन्नी चवन्नी जोड़ कर
दौड़ती हुई आई कमली
आज फिर उदास लौटी है
अभी भी पच्चास पैसे कम पड़ गए
उसकी आइसक्रीम के लिए
लेकिन आस टूटी नहीं है
कल फिर आइसक्रीम वाला आयेगा
तब तक शायद अठन्नी का जुगाड़ हो जाये
आस है तो जुगाड़ भी हो जाएगा ...
ReplyDeletebahut hi sundar rachna, gave me a sense of nostalgic feeling... :)
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteकाश किसी की कोई ख्वाहिश अधूरी ना रहे...
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआशा ही तो जीवन है ... आज नहीं तो कर आइसक्रीम जरूर मिलेगी ... अच्छे भाव ...
ReplyDeleteकाश उसकी आशा पूर्ण हो!
ReplyDeleteummid par to duniya kayam hai....sunder
ReplyDeleteवाह वाह - क्या सजीव चित्रण है - एक बार लगा - काश एक बार वही दिन लौट आते?
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
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