Wednesday, March 28, 2012

ठहर जाने दो लम्हों को

ठहर जाने दो लम्हों को
बिखर जाने दो कुछ मोती
तुम्हारी याद के चादर तले
ये रात है सोती

सितारे आ टपकते हैं
मुझे तन्हा जो पाते हैं
ये जुगनू रात भर
मेरी तरह ही टिमटिमाते हैं

चुराने आ गए हैं फिर
मेरी आँखों के सब सपने
अँधेरे मेरे कानों में
बहुत कुछ बुदबुदाते है

पुराने से पिटारे कुछ
अभी भी अधखुले से हैं
कही रेशम से आंचल के
सितारे झिलमिलाते हैं

यूँ हम तो चल ही पड़ते हैं
वो जब आवाज़ देते हैं
लो अब हम भी उन्हें
आवाज़ देकर आज़माते हैं

शिकायत वो भला हमसे
करें किस बात की बोलो
जो न तो याद करते हैं
न हमको याद आते हैं

मुसाफिर जिस गली के हम रहे
माहों को. सालों को
कभी उनके परिंदे
हम तलक भी उड़ के आते हैं

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर लिखा है आपने, शुभकानाएं !!

    ReplyDelete
  2. चुराने आ गए हैं फिर
    मेरी आँखों के सब सपने
    अँधेरे मेरे कानों में
    बहुत कुछ बुदबुदाते है

    पुराने से पिटारे कुछ
    अभी भी अधखुले से हैं
    कही रेशम से आंचल के
    सितारे झिलमिलाते हैं
    Shaandaar !

    ReplyDelete
  3. यूँ हम तो चल ही पड़ते हैं
    वो जब आवाज़ देते हैं
    लो अब हम भी उन्हें
    आवाज़ देकर आज़माते हैं... बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  4. पुराने से पिटारे कुछ
    अभी भी अधखुले से हैं
    कही रेशम से आंचल के
    सितारे झिलमिलाते हैं

    वाह ... बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास

    ReplyDelete
  5. वाह ...बहुत ही अनुपम भाव समेटे हुए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  6. वाह...वाह....

    चुराने आ गए हैं फिर
    मेरी आँखों के सब सपने
    अँधेरे मेरे कानों में
    बहुत कुछ बुदबुदाते है

    बहुत खूब रंजना जी...
    लाजवाब!!!

    अनु

    ReplyDelete
  7. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया....बहुत बेहतरीन प्रस्‍तुति...!

    ReplyDelete
  8. उस अत्तीत की धूमिल यादें जब प्रकाश इतना देती हैं ,
    अन्त्स्मन की सारी बातें पंक्तियों में कह देती हैं
    ब्यथा भंगिमा की है रंजना भाउक मन को कर देती है
    नई लहर को लेकर नया कलेवर दे देती है ..

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति , यादें ही तो हैं जो जोड़े रखती हैं :)

    ReplyDelete