वाह जनाब... क्या बात है बहुत खूब... भावपूर्ण रचना... समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/09/2011.html
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
वाह जनाब... क्या बात है बहुत खूब... भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/09/2011.html
यथार्थ को कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteवाह! क्या बात है।
ReplyDeleteवाह,बहुत खूब.
ReplyDeleteभूख जब होती है तो चंद का रोटी लगना जायज है :)
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