हम गुज़ारिश क्यों करे
उनसे सिफारिश क्यों करें
यूँ उदासी ओढ़ कर
अश्कों की बारिश क्यों करे
ले हुनर और हौसला
जुट जाएँ हम मैदान में
हम करें ख़ारिज उन्हें
हमको वो ख़ारिज क्यों करें
सोच के पंखों को हम
परवाज़ दें कुछ इस कदर
ढूंढे नयी मंजिल
गए जख्मों में खारिश क्यों करें
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यूँ उदासी ओढ़ कर
ReplyDeleteअश्कों की बारिश क्यों करे
बहुत खूब ..सुन्दर रचना
Nice!
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
रंजना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
हम करें ख़ारिज उन्हें
हमको वो ख़ारिज क्यों करें
वाऽऽह ! क्या ख़ुद्दारी की बात कही है !
आपके ब्लॉग पर अन्य रचनाएं भी पढ़ीं … अच्छी लगीं ।
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
कल 31/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
ले हुनर और हौसला
ReplyDeleteजुट जाएँ हम मैदान में
हम करें ख़ारिज उन्हें
हमको वो ख़ारिज क्यों करें
बहुत ही मार्मिक अनोखे ढंग से लिखी बेमिसाल रचना /बहुत बधाई आपको /
please visit my blog
www.prernaargal.blogspot.com
thanks
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeletebehatreen.....................
ReplyDeleteसोच के पंखों को हम
ReplyDeleteपरवाज़ दें कुछ इस कदर ..बहुत खूब रंजनाजी ....बेहद सुन्दर रचना ...
बहुत प्रेरणादायक
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