आओ ढूँढ निकाले
सारी परेशानियाँ
घर के हर कोने से,
दिमाग से
ऑफिस की पोलिटिक्स से
रिश्तों के ताने बाने से
फैलते खर्चों से
घटती आमदनी से
बढती जरूरतों से
गर्मी के उफान से
उम्र की ढलान से
बच्चों की मोटी फीस से
मन की टीस से
और फिर सलेक्ट आल करके
दबा दे डिलीट का बटन
फिर रिसाइकिल बिन को भी
खंगाल डाले
न रहे परेशानियाँ
न उनका कोई निशान
और फिर जिंदगी को जिए
सीना तान....
...जानती हूँ मै
बहुत बचकाना सा ख्वाब है ये
पर सुनी है मैंने ये कहावत
की जब ख्वाब ही देखने है तो
किचड़ी का क्यों??
बिरियानी का देखो...:)
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ख्वाब है बेशक पर ख्वाबों पर पाबन्दी तो नहीं है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeletebahut badya ...
ReplyDelete:)
aapka sujav kabile tarif hai.
ReplyDeleteबहुत खूब अच्छी प्रस्तुति ..... शुभकामनायें
ReplyDeletebadhiya ...dikkat ye hai ki n to ham mashini hain , n machine ki tarah ye sab ho sakta hai.
ReplyDeleteसच में बहुत सुंदर विषय को बेहतर तरीके से शब्दों में पिरोया गया है। वाकई रुचिकर है। संदेश भी है कविता में..
ReplyDeleteरिश्तों के ताने बाने से
ReplyDeleteफैलते खर्चों से
घटती आमदनी से
बढती जरूरतों से
गर्मी के उफान से
उम्र की ढलान से
बच्चों की मोटी फीस से
मन की टीस से
Bahut Sundar !
बहुत बढ़िया कविता है.
ReplyDeleteसादर
bahut sunder....
ReplyDeleteaaapne sahi bola...
good wishes