Thursday, April 21, 2011















जितनी ऑंखें देखी सब एक जैसी थी
नम, मायूस, उदास, थकी सी, जागी सी
मैंने झाँका जब भी औरत के अन्दर
ऊपर से कुछ, अन्दर बड़ी अभागी सी

9 comments:

  1. रंजना जी, आपने बरबस रुला ही दिया आज। बस इतना ही कह सकता हूँ।

    ReplyDelete
  2. Ranjana ji, bahut uttam...char panktiyon mein sargarbhit baatein ...behtareen...

    ReplyDelete
  3. MAY BE...
    upar se kuch,andder badi "AKELI" se....
    u touched my heart toooooooo....

    ReplyDelete
  4. बेहद भावभीनी रचना।

    ReplyDelete
  5. नम ...मायूस उदास थकी और जागी सी ...सच औरत के शब्द के समानार्थी लगते है ....सुन्दर अभिव्यक्ती

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. marmsparshee rachana jo man ko bhigo gayee .

    ReplyDelete