Tuesday, April 12, 2011

कुछ सूनापन कुछ सन्नाटा
मन ने नहीं किसी से बाँटा
दर्द न जाने क्यों होता है
दीखता नहीं मुझे वो काँटा।

गुमसुम-सी खिड़की पर बैठी
आते जाते देखूँ सबको
अपने से सारे लगते हैं
तुम बोलो पूजूँ किस रब को।

पुते हुए चेहरों के पीछे का
काला सच दिख जाता है
दो रूपए ज़्यादा दे दो तो
यहाँ ख़ुदा भी बिक जाता है।

नहीं लोग अपने से लगते
नहीं किसी से कह सकते सब
सब इंसा मौसम के जैसे
जाने कौन बदल जाये कब?

दौड़ में ख़ुद की जीत की ख़ातिर
कितने सर क़दमों के नीचे
हुनर कोई भी काम न आया
सारे दबे नोट के नीचे।

मेहनत की चक्की में पिस कर
दिन पर दिन घिसती जाती हूँ
मै चिटके बर्तन के जैसी
लगातार रिसती जाती हूँ

http://kavita।hindyugm.com/2010/05/main-toote-bartan-ke-jaisi.html

11 comments:

  1. मेहनत की चक्की में पिस कर
    दिन पर दिन घिसती जाती हूँ
    मै टूटे बर्तन के जैसी
    लगातार रिसती जाती हूँ।

    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने.

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  2. bahut sunder abhivykti.......
    agar bura na mano to ..........
    toota bartan rista nahee usme rakhee cheez ristee hai.......mai toote bartan ke jaisee kee jagah bartan me jaisee shayad theek rahe....


    anytha na le......

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  3. दुर्गाष्टमी और रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
    माँ दुर्गा आपकी सभी मंगल कामनाएं पूर्ण करें

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  4. आज की सच्चाई को बयां करती हुई रचना ,खुबसूरत अहसासों की बहुत अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई

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  5. पुते हुए चेहरों के पीछे का
    काला सच दिख जाता है
    दो रूपए ज़्यादा दे दो
    तो यहाँ ख़ुदा भी बिक जाता है।

    खूब कहा आपने ..... बहुत बढ़िया रचना

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  6. रंजना जी, अद्भुत रचना रच दी है आपने, जीवन के सत्‍य को उद्घाटित करती हुई।

    ............
    ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहन चाहिए?
    लिंग से पत्‍थर उठाने का हठयोग।

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  7. second stanza sab ko apne jaisa batata hai fourth kahata hai sab apne jaise nahi lagte kya aashy samjhane ka kasth krengi .i m not poet nor have knowledge of poems .bus u he jigyasa hui to puchh liya .sorry if any word hurts.

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  8. आदत.......मुस्कुराने पर
    सच है क्या जिंदगी का किसी को पता नहीं.......संजय भास्कर
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

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