बेहतर होगा यदि किताब के रूप में छपवाने के बजाय (क्योंकि इसमें बहुत से झमेले होते हैं) अपनी कविताओं को pdf फोर्मेट में ई बुक के रूप में प्रकाशित करें.फिर इसे www.scribd.com या इस जैसी किसी साईट पर अपलोड कर दें.जिसे कोई भी डाउनलोड कर के (किताब का मूल्य डेबिट या क्रेडिट कार्ड द्वारा चुका कर)पढ़ सकेगा.
एक दो तो हम जब चाहे छाप दें पत्रिका में और दिल चाहेगा तो पूरा विशेषांक भी निकाल देंगे। सारी बात दिल की है। बस कविता दिल में उतरनी चाहिए न कि दिल से उतरनी चाहिए। बाक़ी आप माल लगाओ तो कैसी भी छाप देंगे। सच्ची और खरी बात को दो टूक कहा जाए तो यह कहा जाएगा। धन्यवाद। http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/dr-anwer-jamal.html
रंजना जी, इसके लिए आप हिन्दयुग्म (www.hindyugm.com) के संचालक शैलेश भारतवासी जी से संपर्क कर सकती हैं। उन्होंने हिन्द युग्म प्रकाशन शुरू किया है और एक साल में करीब 25 किताबें प्रकाशित की हैं।।
अब आपकी कवितायेँ सो गयी हैं ,यूँ लगता है जैसे आपने शब्दों से बेवफाई की है ,पूरा ब्लॉग पढ़ गया ,एक वक्त जो आपने लिखा वो अचभित कर देता है ,लेकिन समय के साथ साथ कविता आत्मकेंद्रित होती चली जाती है
बेनामी जी, वैसे तो मै आपका नाम भली भांति जानती हूँ फिर भी एक सुझाव देना चाहूंगी. की जो लोग केवल उनकी कवितायेँ पसंद करते है जिन्हें वो खुद पसंद करतें है और उनकी कवितायेँ न पसंद करतें है जिन्हें वो खुद पसंद नहीं करते. वो बुद्धिजीवी वर्ग में खुद को न समझें तो बेहतर होगा. कला के मामले में स्वार्थी न होना ही सच्चे कलाकार की पहचान होती है. और अगर आप अपना ब्लॉग देखे तो शायद आपको उसमे अपनी मनो व्यथा के आलावा कुछ भी नहीं दिखेगा.
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
बेहतर होगा यदि किताब के रूप में छपवाने के बजाय (क्योंकि इसमें बहुत से झमेले होते हैं) अपनी कविताओं को pdf फोर्मेट में ई बुक के रूप में प्रकाशित करें.फिर इसे www.scribd.com या इस जैसी किसी साईट पर अपलोड कर दें.जिसे कोई भी डाउनलोड कर के (किताब का मूल्य डेबिट या क्रेडिट कार्ड द्वारा चुका कर)पढ़ सकेगा.
ReplyDeleteसादर
चक्कर में तो हम भी हैं एक किताब छपवाने के।
ReplyDeleteएक दो तो हम जब चाहे छाप दें पत्रिका में और दिल चाहेगा तो पूरा विशेषांक भी निकाल देंगे।
ReplyDeleteसारी बात दिल की है। बस कविता दिल में उतरनी चाहिए न कि दिल से उतरनी चाहिए।
बाक़ी आप माल लगाओ तो कैसी भी छाप देंगे।
सच्ची और खरी बात को दो टूक कहा जाए तो यह कहा जाएगा।
धन्यवाद।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/dr-anwer-jamal.html
रंजना जी, इसके लिए आप हिन्दयुग्म (www.hindyugm.com) के संचालक शैलेश भारतवासी जी से संपर्क कर सकती हैं। उन्होंने हिन्द युग्म प्रकाशन शुरू किया है और एक साल में करीब 25 किताबें प्रकाशित की हैं।।
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हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्या दोगे प्यार की परिभाषा?
अब आपकी कवितायेँ सो गयी हैं ,यूँ लगता है जैसे आपने शब्दों से बेवफाई की है ,पूरा ब्लॉग पढ़ गया ,एक वक्त जो आपने लिखा वो अचभित कर देता है ,लेकिन समय के साथ साथ कविता आत्मकेंद्रित होती चली जाती है
ReplyDeleteबेनामी जी, वैसे तो मै आपका नाम भली भांति जानती हूँ फिर भी एक सुझाव देना चाहूंगी. की जो लोग केवल उनकी कवितायेँ पसंद करते है जिन्हें वो खुद पसंद करतें है और उनकी कवितायेँ न पसंद करतें है जिन्हें वो खुद पसंद नहीं करते. वो बुद्धिजीवी वर्ग में खुद को न समझें तो बेहतर होगा. कला के मामले में स्वार्थी न होना ही सच्चे कलाकार की पहचान होती है. और अगर आप अपना ब्लॉग देखे तो शायद आपको उसमे अपनी मनो व्यथा के आलावा कुछ भी नहीं दिखेगा.
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