घुट जाता है दिल जब घने बादलों की तरह ... आखें छलक आती हैं बारिश की बूंदों की तरह ... बरसात के बाद जैसे आसमान और जमीन साफ़ धुले हुए लगता हैं , दर्द भी पलकों के बरसने से धुल जाता होगा
सन्नाटे को सुनने की कोशिश करती हूँ...
रोज़ नया कुछ बुनने की कोशिश करती हूँ...
नहीं गिला मुझको की मेरे पंख नहीं है....
सपनो में ही उड़ने की कोशिश करती हूँ.
ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥
ReplyDeletesunder:)
ReplyDeleteआज फिर बारिश ने धो डाली ज़मीन
ReplyDeleteधुल गयी बादल के आँखों की नमी
दिल में उतरती हुयी ... खूबसूरत रचना ...
घुट जाता है दिल जब घने बादलों की तरह ...
ReplyDeleteआखें छलक आती हैं बारिश की बूंदों की तरह ...
बरसात के बाद जैसे आसमान और जमीन साफ़ धुले हुए लगता हैं , दर्द भी पलकों के बरसने से धुल जाता होगा
रचना पढ़ कर सुखद अनुभूति हुई। बधाई
ReplyDeleteअंतर्मन के कपाटों पर दस्तक देती प्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeletebhawbhini.
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