Friday, March 26, 2010

दोस्त था मेरा सबसे प्यारा

उसकी छांव बड़ी अपनी थी
स्नेहिल माँ की गोद के जैसी.
कितनी कवितायेँ जन्मी थी
जब जब उसकी छांव में बैठी.
नयी कोपलें जब भी टूटी
बड़े प्यार से पाली मैंने
सहलाकर , दुलराकर उनको
पन्नो बीच सजा ली मैंने
जब भी हवा चूमती उसको
शरमा कर झुक जाता आगे
जब भी खेली छुआ छुआई
उसके आगे पीछे भागे
दादी की झुर्री जैसी थी
उसकी छाल खुरदुरेपन में
सर पर छाँव किये रहता था
माँ जैसे ही अपनेपन से
काट दिए एक दिन आरी ने
स्नेह भरे वो सारे बंधन
आँगन में अब नहीं कोपलें
धूळ भरे चलते है अंधड़
हवा ढूँढती फिरती अब भी
कहा गया वो प्रियतम प्यारा
पेड़ कहा करते सब उसको
दोस्त था मेरा सबसे प्यारा

9 comments:

  1. सुन्दर कविता । बधाई ।

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  2. पेड़ कहा करते सब उसको
    दोस्त था मेरा सबसे प्यारा

    -बहुत भावपूर्ण रचना!!

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  3. पेड कहा करते थे जिसे दोस्त था मेरा सबसे प्यारा ....
    आरी से काट दिए सारे बंधन स्नेह के ...
    आपके दुःख में शामिल है ...
    पर्यावरण के प्रति प्रेम दर्शाती अच्छी पोस्ट ...!!

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  4. bahut sunder kavita..........dil ko choo gayee.......

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  5. अनुपान .. प्यारी से रचना ....

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  6. i take frndshp as a blessings frm god....if u hv true one...

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  7. कथ्य और भाव प्रस्तुति हर नज़रिए से मुझे कविता बहुत ही खूब लगी.
    हौले-हौले अपनी बात रखती है और हर संवेदनशील को उसके अंतरे-कोने तक महसूस करवाती है.

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