Monday, March 15, 2010

आसमान कुछ है उदास सा

आसमान कुछ है उदास सा
कुछ चुप चुप सी आज चांदनी
हर्फ़ बहुत धुंधले से दिखते
सुर खो बैठी आज रागिनी

कोई बैठा है गुमसुम सा
रूठा है कुछ है उदास सा
दूर बहुत है पहुँच से मेरी
फिर भी लगता बहुत पास सा

घुटनों पर अपना सर रखकर
बैठा होगा कही अकेला
बाहर होगी भरी दुपहरी
मन के अन्दर घोर अँधेरा

इस उलझन को सुलझाने में
मै खुद कही उलझ न जाऊ
सोच रही हूँ विदा बोल दूँ
या कैसे भी उसे मनाऊ?

2 comments:

  1. shabdo ke sagar mein kabhi kahi kuch shabd nahi milte,

    achha likha aapne!

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