
खुशियाँ यूँ ही दस्तक नहीं देती
किसी के दरवाज़े पर
वो आती है
बहुत लम्बा सफ़र तय करके
चलते फिरते उठते बैठते
जाने पहचाने और अनजाने लोगो के बीच
कभी कभी हम बाँट आते है
थोड़ी सी ख़ुशी
कभी कभी जान बूझ कर
तो कभी अनजाने मे
और वो बांटी हुई ख़ुशी
जब निकलती है आपने सफ़र पर
तो पलट कर दस्तक ज़रूर देती है
ये बताने के लिए
जो बांटा है वो कभी न कभी
आपके हिस्से में आयेगा ज़रूर
जो बांटा है वो कभी न कभी
ReplyDeleteआपके हिस्से में आयेगा ज़रूर
शत प्रतिशत सहमत आपसे बहुत सुंदर भाव बधाई
जो बांटा है वो कभी न कभी
ReplyDeleteआपके हिस्से में आयेगा ज़रूर
....बहुत सटीक और सुंदर प्रस्तुति...
बेहतरीन रचना - चेहरे पर मुस्कान आ गई
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति बहुत ही सुन्दर और प्रेरक है,रंजना जी.
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपका हार्दिक स्वागत है.
bahut umdaa ....
ReplyDeleteवाह ....बहुत खूब
ReplyDeleteकल 21/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मेरी नज़र से चलिये इस सफ़र पर ...
वाह वाह...
ReplyDeleteबहुत बहुत खूबसूरत कविता...
कविता पढते ही आपका ब्लॉग फोलो कर लिया कि भविष्य में आपकी लिखी कोई रचना पढ़ने से चूक ना जाऊं...
बधाई.
जो बांटा है वो कभी न कभी
ReplyDeleteआपके हिस्से में आयेगा ज़रूर ...
बहुत खूब .. काश सभी यही सोचें और खुशियाँ बांटना सीख लें .... सार्थक चिंतन ...
खूबसूरत अभिव्यक्ति
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