Monday, November 7, 2011

मेरी कभी भी याद न आये


कभी बरसे जो आँखों से
तो सावन थाम लेना तुम
कोई दुश्मन जो याद आये
तो मेरा नाम लेना तुम

यूँ करना नफरतें मुझसे
की सारी याद बह जाये
बचे न नर्म सा कुछ भी
सुलगती आंच रह जाये

की शायद ये तरीका
तुमको कुछ राहत दिला पाए
तुम्हे भूले से फिर मेरी
कभी भी याद न आये

9 comments:

  1. अतिसुन्दर बधाई

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  2. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  3. कोई दुश्मन जो याद आये
    तो मेरा नाम लेना तुम

    वाह ..बहुत खूब ..सुन्दर

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  4. पर कौन है जो उनको भूलना चाहता है ...
    अच्छी कविता ...

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  5. बेहतरीन रचना है ..
    यूँ करना नफरतें मुझसे
    की सारी याद बह जाये
    बचे न नर्म सा कुछ भी
    सुलगती आंच रह जाये

    अद्भुत

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  6. बेहतरीन नज्म के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

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