Friday, November 4, 2011

सर्दियां



गर्मियों की सर्दियों से गुफ्तगू होने लगी
धूप अब अपनी तपिश वाली चुभन खोने लगी

शाम आ जाती है जल्दी रात की आगोश में
ओस अब हर शय पर हीरों की फसल बोने लगी

नर्म शामें, गर्म शालें, और बर्फीली हवा
चांदनी भी अब रजाई में दुबक सोने लगी

मूंगफलियाँ छीलती बैठी है दादी धूप में
गोरी सी रंगत पिघल कर ताम्बई होने लगी

3 comments:

  1. गर्मियों की सर्दियों से गुफ्तगू होने लगी
    धूप अब अपनी तपिश वाली चुभन खोने लगी.बहुत ही सुन्दर......

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  2. बहुत सुन्दर मौसमी रचना ...

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  3. वाह...
    बहुत सुन्दर....

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