कही एक राह कच्ची सी
किसी मासूम बच्ची सी
मुझे आवाज़ देती है
चले आओ...चले आओ
दिखावे का चलन छोड़ो
वहम जितने भी है तोड़ो
अरे अब तो कदम मोड़ो
चले आओ...चले आओ
भिगो कर खुद को बारिश में
दिल-ए-खुद की सिफारिश में
मौसम की गुज़ारिश में
चले आओ...चले आओ
चलो हीरों को हम ढूंढे
बटोरे फूल पर बूंदे
कही बैठें पलक मूंदे
चले आओ...चले आओ
घने पत्तों की छाँव में
किसी छोटे से गाँव में
पहन पाजेब पाँव में
चले आओ...चले आओ
ये माना राह पथरीली
कही सूखी..कहीं गीली
कई नज़रें हैं ज़हरीली
चले आओ...चले आओ
की अब तो मान लो अपना
मै सच हूँ, हूँ नहीं सपना
तुम्हारा नाम है जपना
चले आओ...चले आओ
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bahut sundar abhivyakti ...
ReplyDeleteभिगो कर खुद को बारिश में
ReplyDeleteदिल-ए-खुद की सिफारिश में
मौसम की गुज़ारिश में
चले आओ...चले आओ
चलो हीरों को हम ढूंढे
बटोरे फूल पर बूंदे
कही बैठें पलक मूंदे
चले आओ...चले आओ....v nice poem
भिगो कर खुद को बारिश में
ReplyDeleteदिल-ए-खुद की सिफारिश में
मौसम की गुज़ारिश में
चले आओ...चले आओ
बहुत ही प्यारी रचना।
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कल 27/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत प्यारी सी रचना ...
ReplyDeletebhau hi sunder bhaav abhivaykti....
ReplyDeleteरंजना जी, बहुत ही प्यारी कविता है। बधाई।
ReplyDelete.......
प्रेम एक दलदल है..
’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।
bahut hi khubsurat rachan chale aao chale aao :)
ReplyDeletebahut khubsurat dost ji :)
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
आपका बयान हमेशा की तरह प्यारा!!
ReplyDeletesuperb, loved to read this one.
ReplyDeleterhyme pattern have been effectively utilized and used.
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