Monday, July 25, 2011

चले आओ...चले आओ

कही एक राह कच्ची सी
किसी मासूम बच्ची सी
मुझे आवाज़ देती है
चले आओ...चले आओ

दिखावे का चलन छोड़ो
वहम जितने भी है तोड़ो
अरे अब तो कदम मोड़ो
चले आओ...चले आओ

भिगो कर खुद को बारिश में
दिल-ए-खुद की सिफारिश में
मौसम की गुज़ारिश में
चले आओ...चले आओ

चलो हीरों को हम ढूंढे
बटोरे फूल पर बूंदे
कही बैठें पलक मूंदे
चले आओ...चले आओ

घने पत्तों की छाँव में
किसी छोटे से गाँव में
पहन पाजेब पाँव में
चले आओ...चले आओ

ये माना राह पथरीली
कही सूखी..कहीं गीली
कई नज़रें हैं ज़हरीली
चले आओ...चले आओ

की अब तो मान लो अपना
मै सच हूँ, हूँ नहीं सपना
तुम्हारा नाम है जपना
चले आओ...चले आओ

10 comments:

  1. भिगो कर खुद को बारिश में
    दिल-ए-खुद की सिफारिश में
    मौसम की गुज़ारिश में
    चले आओ...चले आओ

    चलो हीरों को हम ढूंढे
    बटोरे फूल पर बूंदे
    कही बैठें पलक मूंदे
    चले आओ...चले आओ....v nice poem

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  2. भिगो कर खुद को बारिश में
    दिल-ए-खुद की सिफारिश में
    मौसम की गुज़ारिश में
    चले आओ...चले आओ

    बहुत ही प्यारी रचना।
    -------
    कल 27/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. bhau hi sunder bhaav abhivaykti....

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  4. bahut hi khubsurat rachan chale aao chale aao :)
    bahut khubsurat dost ji :)

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  5. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  6. आपका बयान हमेशा की तरह प्यारा!!

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  7. superb, loved to read this one.
    rhyme pattern have been effectively utilized and used.

    www.poeticprakash.com

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