Friday, July 1, 2011

मुश्किल बहुत ये बात है तो क्या?


















क्यों आंखे नम करू
फहरिस्त गम की साथ है तो क्या?

मै नन्हा सा दिया
लम्बी बहुत ये रात है तो क्या?

क्यों गम के ज़िक्र में
बर्बाद करू कीमती ये पल?

तलाशूँ हल कोई
मुश्किल बहुत ये बात है तो क्या?

खुदा पर क्यों भरोसा करके
बैठूं हर मुसीबत में?

मुझे मालूम है की सिर पे
उसका हाथ है तो क्या?

तराशे पत्थरों को
मान लेते हैं खुदा जब लोग

मुझे रब ने तराशा
खुद में खुदा को मान लूँ तो क्या?

9 comments:

  1. मुझे रब ने तराशा
    खुद में खुदा को मान लूँ तो क्या?

    -बिल्कुल जी...बहुत खूब!!!

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  2. भगवान भरोसे रहिये पर ख़ुदा बनने की ख्वाहिश छोड़ दीजिये अच्छी रचना ...

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  3. Sunil ji...shayad apne padha nahi theek se...khud me khuda yani har vyakti ke andar eshwar hota hai...mai khuda hun aisa maine kabhi nahi kaha...agar patthar ke but tarash kar pooje ja sakte hain to apne andar ke eshwar yani acchi soch ko jaga kar bhi bahut kuch kiya ja sakta hai...comment ke liye dhanyvaad...:)

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  4. तराशे पत्थरों को
    मान लेते हैं खुदा जब लोग

    मुझे रब ने तराशा
    खुद में खुदा को मान लूँ तो

    excellent.....good wishes

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  5. सर पर उसका हाथ तो चाहे कितनी मुश्किल राह हो , आसान हो जाती है !

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  6. shuru kee panktiyan bahut achchhee lageen ....ye bhi sach hai ki har koi apna khud khuda hota hai ..vo chahe to achchhi ibaraten likhe ....agle palon kee kismat ham svyam banaate hain ...

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  7. मनोभावों को सुन्दरता से व्यक्त करती बहुत खूबसूरत रचना ....

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  8. अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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