Saturday, March 19, 2011



जिंदगी की चादरों पर
रंग गाढ़े, रंग हलके

कुछ छलक कर खो चुके हैं
कुछ छलकने को हैं ढलके

कुछ बिखर कर बह चुके हैं
कुछ फिजाओं में है महके

कुछ बड़े नाज़ुक नरम
और कुछ गरम शोलों से दहके

4 comments:

  1. 4 pankityon mein itni gahrayi.. 10 baar padh ke kavita samajh mein aayi..

    bahut acchha..
    prashant
    http://coffeefumes.blogspot.com

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  2. सुंदर ... आप हमेशा खूबसूरत बात कहती हैं

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