रोज़ जोडती हूँ तिनके
थक गयी हूँ बिनते बिनते
पर मेरा नन्हा सा घोसला
झेल रहा न जाने कितनी बला
कभी बारिश, कभी तूफ़ान,
कभी गर्मी का उफान
कभी सुलगाता है
कभी डुबो जाता है
कभी पानी पर उतराता है
कभी आहट से थरथराता है
फिर भी पंखो के नीचे समेटे हुए
घोसले और उसके परिंदों को
बचाने की कोशिशों में
काट रही हूँ ये धधकते, कड़कते दिन
क्योंकि जिंदगी के कुछ मायने नहीं
इन परिंदों और घोसले के बिन
थक गयी हूँ बिनते बिनते
पर मेरा नन्हा सा घोसला
झेल रहा न जाने कितनी बला
कभी बारिश, कभी तूफ़ान,
कभी गर्मी का उफान
कभी सुलगाता है
कभी डुबो जाता है
कभी पानी पर उतराता है
कभी आहट से थरथराता है
फिर भी पंखो के नीचे समेटे हुए
घोसले और उसके परिंदों को
बचाने की कोशिशों में
काट रही हूँ ये धधकते, कड़कते दिन
क्योंकि जिंदगी के कुछ मायने नहीं
इन परिंदों और घोसले के बिन
wah kya baat hai..........
ReplyDeletebahut sunder bhav piroye hai ise rachanaa me aapne...........
Aabhar
bas kahna chahungi ki yah kavita vatvriksh ke liye bhej den rasprabha@gmail.com per parichay aur tasweer ke saath
ReplyDeleteक्योंकि जिंदगी के कुछ मायने नहीं
ReplyDeleteइन परिंदों और घोसले के बिन...
एक मां के दिल का बयान इससे बेहतर क्या हो सकता है ...
बहुत -बहुत बढ़िया!
जीवन तो इससे भी बड़ा है .... पाए इतना भी हो सके इस जीवन में तो बहुत है ...
ReplyDeletebehad khoobsurat bhaw.
ReplyDeleteबेहतर रचना। अच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकविता का अन्त लाजवाब् है और मन को मोह लेता है ।
sunder..........
ReplyDeletebahut achhi rachna hai !!
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