घर के आँगन के पीछे
एक बड़ा सा पेड़
चाँद झांकता पीछे से
जैसे उजली भेड़
फर्श पे बिखरे पानी पर
कभी उतर आता
कभी बादलों से करता
प्यार भरी मुठभेड़
मुझको अक्सर दिखती है
आसमान तक मेड़
एक नन्हा सा गाँव वहाँ
परियों का है ढेर
पँख चुरा कर भागी हूँ
बड़ी मशक्कत से
कितनी बड़ी बहादुर मैं
कितनी बड़ी दिलेर ....... ;)...:)
- रंजना डीन
पंख चुराकर भागी , कितनी बहादुर , इतनी दिलेर :)
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ना !
फर्श पे बिखरे पानी पर
ReplyDeleteकभी उतर आता
कभी बादलों से करता
प्यार भरी मुठभेड़....
बहुत खूबसूरत रचना
very nice.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 09 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete