Sunday, October 21, 2012



















रात बढती गयी
चाँद चढ़ता गया
नर्म लहरों पे
 नक्काशी गढ़ता गया

 हम लपेटा किये
 उँगलियों पर लटें
 दायरा उनकी यादों का
बढ़ता गया

दिन गुज़रता गया
 वक़्त ढलता गया
रौशनी पर सियाही सी
मलता गया

हम रुके भी थके भी
उबासी भी ली
सोच का सिलसिला
फिर भी चलता गया

सख्त है दिल बहुत
ये गुमां था हमें
पर ये तो मोम जैसा
पिघलता गया

पर पिघलने से जब
बूँद इसकी गिरी
एक नयी सी ही सूरत में
ढलता गया

सोचते सोचते लो
सुबह हो गयी
रंग मौसम का भी
अब बदलता गया

नर्म सी है हवा
नर्म सी रौशनी
जैसे हल्दी में
सिन्दूर घुलता  गया

7 comments:

  1. हल्दी में जैसे सिन्दूर घुलने गया.. imagine karke hi kitna serene lag raha hai..
    Sundar rachna ke badhai.. :)

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  2. सख्त है दिल बहुत
    ये गुमां था हमें
    पर ये तो मोम जैसा
    पिघलता गया

    आंतरिक मन के भाव स्पष्ट झलके
    यूँ मान लीजिये की बस .... छु गयी
    .. सुन्दर प्रस्तुती
    बधाई स्वीकारें। आभार !!!

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं
    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post_17.html

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  3. बहुत प्यारे भाव हैं आपके. हर शब्दों में असीम प्यार समेट रखा है आपने.

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  4. सख्त है दिल बहुत
    ये गुमां था हमें
    पर ये तो मोम जैसा
    पिघलता गया
    दायरा उनकी यादों का
    बढ़ता गया
    बहुत ही हृदयस्पर्शी भाव,रंजना जी

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  5. शब्द शब्द मोती ,शब्द शब्द संदल

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