Monday, October 15, 2012

ये सब भी ज़रूरी है, पढाई के अलावा...:)























बचपन में पैर के अंगूठे से
गीली मिट्टी पर
आड़ी टेढ़ी रेखाएं कुरेदते हुए
गुंधे हुए आंटे से
चिड़िया, तितली और कछुए बनाते हुए
दशहरे पर कालोनी के बच्चों की
जिद्द पर हर साल रावन बनाते हुए
कभी सोचा नहीं
की इसके पीछे का कारण क्या है

स्कूल में जिस दिन 
होना होता था खेल कूद,
या सांस्कृतिक कार्यक्रम
पापा कहते मत जाओ आज
पढाई तो होगी नहीं आज
और मै भी मान जाती खुश होकर
की चलो आज दिनभर
घर में मस्ती करूंगी

पर एक दिन न जाने क्यों
जिद्द कर बैठी मै
की आज जाने दो स्कूल 
और मान गए मम्मी पापा
उस दिन थी एक कला प्रतियोगिता
पुलिस लाइन में
सभी स्कूल के बच्चों को बुलाया गया था

मै भी गयी अपने स्कूल की ओर से
१ घंटे की प्रतियोगिता  के बाद
पुकारे गए नाम
दुसरे नंबर पर मेरा नाम था
जो भीड़ में मै सुन भी नहीं पाई थी
टीचर ने गोद में उठाया
और मुझे पुरस्कार देने के लिए
खड़ा कर दिया गया एक बड़ी सी मेज़ पर

दिया गया मुझे एक सर्टिफिकेट
और एक छोटा सा गुलाबी रंग का लिफाफा
और गूँज उठी तालियों की गडगडाहट 
वो मेरे जीवन की पहली प्रतियोगिता
और पहला पुरुस्कार था

उस दिन मुझे याद है
की स्कूल से घर तक
बिना रुके दौड़ी थी मै
घर के पास पहुँचते ही
रोकने लगे कालोनी के बच्चे
अरे रुको तो, दौड़ क्यों रही हो
पर मुझे तो मम्मी पापा के पास
ही जाकर रुकना था

बिना कुछ बोले सर्टिफिकेट 
और लिफाफा थमा दिया माँ को
लिफाफे से निकले २५१ रूपये
माँ मुस्कुरायी और चिपका लिया सीने से 
और पापा ने मान लिया 
ये सब भी ज़रूरी है
पढाई के अलावा

5 comments: