Friday, October 28, 2011


नज़र बचा कर भाग चलो
या कर लो लड़ने की तैयारी

रात और दिन जैसा जीवन
गम आयेगा बारी बारी

एक मुसीबत ख़तम हुई तो
एक हो गयी फिर से जारी

माना वो लम्हा है मुश्किल
जाना वो पल कितना भारी

जीत कहा जाएगी बचकर
गर होगी पूरी तैयारी

उतनी ही चटकीली सुबह
रात कटी हो जितनी काली

7 comments:

  1. वाह आशा का संचार करती सुन्दर रचना।

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  2. जितने खूबसूरत शब्द हैं उनते ही उन्नत भावों से सजाया है. शब्द नहीं हैं मेरे पास बयान करने के लिए

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  3. fir wo hi baat ....sansaar ke kisi bhi diye mein wo roshni nahin jiske ujale se tumhen ujala mile.........tum suraj ho meri moti...........

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