Saturday, February 19, 2011
आंगन फिर से हरा है
देख रही हूँ
एक सूखा पौधा फिर से हरा होता
उसकी मिट्टी में फिर से सुगंध है
फूट रही हैं कोपलें
और वो सख्त टहनियां
जो छूते ही चुभ जाती थी
अब नरम होती जा रहीं है
पहले मै बचा कर निकलती थी
इससे अपना आंचल
अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
इसकी कोपलों पर जमी धूळ
मन है प्रसन्न क्योंकि
बहुत दिनों बाद
आंगन फिर से हरा है
खुशियों से भरा है
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लगता है बसंत का रंग आँगन मे छाने लगा है। सुन्दर रचना बधाई।
ReplyDeleteKhushiyaan aise hi bani rahen ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
ReplyDeletesunder hai...
ReplyDeleteAti sundar udgar...le kar aaya basant bahar
ReplyDeleteDhanyavad aapki prastuti ke liye.
अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
ReplyDeleteइसकी कोपलों पर जमी धूळ
मन है प्रसन्न क्योंकि
bahut sundar ahsas, badhai
देख रही हूँ
ReplyDeleteएक सूखा पौधा फिर से हरा होता
उसकी मिट्टी में फिर से सुगंध है
फूट रही हैं कोपलें
और वो सख्त टहनियां
जो छूते ही चुभ जाती थी
अब नरम होती जा रहीं है
पहले मै बचा कर निकलती थी
इससे अपना आंचल
अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
इसकी कोपलों पर जमी धूळ
मन है प्रसन्न क्योंकि
बहुत दिनों बाद
आंगन फिर से हरा है
खुशियों से भरा है.....
sab kuchh ek saans me hi padh gya.....congrats