Saturday, February 19, 2011

आंगन फिर से हरा है





देख रही हूँ
एक सूखा पौधा फिर से हरा होता
उसकी मिट्टी में फिर से सुगंध है
फूट रही हैं कोपलें
और वो सख्त टहनियां
जो छूते ही चुभ जाती थी
अब नरम होती जा रहीं है
पहले मै बचा कर निकलती थी
इससे अपना आंचल
अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
इसकी कोपलों पर जमी धूळ
मन है प्रसन्न क्योंकि
बहुत दिनों बाद
आंगन फिर से हरा है
खुशियों से भरा है

7 comments:

  1. लगता है बसंत का रंग आँगन मे छाने लगा है। सुन्दर रचना बधाई।

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  2. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

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  3. Ati sundar udgar...le kar aaya basant bahar

    Dhanyavad aapki prastuti ke liye.

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  4. अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
    इसकी कोपलों पर जमी धूळ
    मन है प्रसन्न क्योंकि
    bahut sundar ahsas, badhai

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  5. देख रही हूँ
    एक सूखा पौधा फिर से हरा होता
    उसकी मिट्टी में फिर से सुगंध है
    फूट रही हैं कोपलें
    और वो सख्त टहनियां
    जो छूते ही चुभ जाती थी
    अब नरम होती जा रहीं है
    पहले मै बचा कर निकलती थी
    इससे अपना आंचल
    अब पोंछ देती हूँ अपने आंचल से
    इसकी कोपलों पर जमी धूळ
    मन है प्रसन्न क्योंकि
    बहुत दिनों बाद
    आंगन फिर से हरा है
    खुशियों से भरा है.....
    sab kuchh ek saans me hi padh gya.....congrats

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