Tuesday, February 15, 2011

खोजते हो क्यों मुझे





खोजते हो क्यों मुझे
बनकर हवा मै बह गयी
हर्फ़ जो किस्मत में थे
तुमसे सभी वो कह गयी

चांदनी अब भी है रोशन
रात है अब भी जवां
फिर तुम्हे लगता है क्यों
की कुछ कमी सी रह गयी

रिश्तों की दीवार में
शायद नमी ज्यादा ही थी
हल्का सा झोंका जो आया
भरभरा कर ढह गयी

वक़्त कर देता है दिल को सख्त
अब आया यकीन
कितने सारे हादसे
मै मुस्कुरा कर सह गयी

10 comments:

  1. .शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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  2. रिश्तों की दिवार में नमी ज्यादा थी जो ढह गयी ...
    हुई सख्त तो कितने हादसे मुस्कुरा कर सह गयी ...
    बहुत बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ ...!

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  3. रिश्तों की दीवार में
    शायद नमी ज्यादा ही थी
    हल्का सा झोंका जो आया
    भरभरा कर ढह गयी
    ये पँक्तियाँ बहुत अच्छी लगी। शुभकामनायें।

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  4. वक़्त कर देता है दिल को सख्त
    अब आया यकीन
    कितने सारे हादसे
    मै मुस्कुरा कर सह गयी ...

    Bahut khoob ... sach hai vaqt insaan ko sab sahne ki adat dal deta hai ..

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  5. कमाल का शिल्प है..

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  6. वक़्त कर देता है दिल को सख्त
    अब आया यकीन
    कितने सारे हादसे
    मै मुस्कुरा कर सह गयी
    waqt to sach me har ko jeene ka jajba de deti hai..:)
    aap sada muskurate rahen..:)

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  7. Hi..

    Kitne saare haadse,
    main muskrura kar sah gayi..

    wah...

    vakt beshak ho kathin,
    par raah hai sooni nahin...
    jo bhi hai humraah...
    uske sang bhi kuchh bantiye...
    jindgi beshak kathin hai..
    rah main kathinaiyan...
    par sahare pyaar ke har...
    mushkil se har lad jaaiye...

    sundar bhav...

    Deepak...

    Meri Kavita "Prem Divas" padhen...

    www.deepakjyoti.blogspot.com

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  8. रिश्तों की दीवार में
    शायद नमी ज्यादा ही थी
    हल्का सा झोंका जो आया
    भरभरा कर ढह गयी
    ....
    aankh me nami aa gayi...

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